sutra sathan samanya vishesh gun dravya karm samvay सूत्र स्थान सामान्य विशेष गुण द्रव्य कर्म समवाय चरक संहिता इन पदार्थों का वर्णन चरक सूत्र स्थान अध्याय एक में वर्णन किया गया है।
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सामान्य विशेष गुण द्रव्य कर्म समवाय इन पदार्थों का वर्णन
सामान्य तथा विशेष की परिभाषा –
सर्वदा सर्वभावनम सामान्य वृद्धि कारणम्। ह्रासहेतुर्वीशेषक्ष्च प्रवृत्तिरुभयस्य तु।।
सदा सभी भावों की वृद्धि करने वाला सामान्य होता है और कम करने का कारण विशेष होता है । इस आयुर्वेद शास्त्र में सामान्य और विशेष दोनों ही प्रवृत्ति की जाती है इन दोनों की क्रिया से दोष धातु एवं मलों की वृद्धि और ह्रास किया जाता है ।
एकत्व बुद्धि को उत्पन्न करने वाला सामान्य होता है जो विभिन्न बुद्धि को उत्पन्न करता है वह विशेष होता है सामान्य तुल्य अर्थ को बतलाता है विशेष इनसे विपरीत अर्थ का बोध कराता है ।
sutra sathan samanya vishesh gun dravya karm samvay सूत्र स्थान सामान्य विशेष गुण द्रव्य कर्म समवाय चरक संहिता पदार्थों का वर्णन
गुण की परिभाषा –
सार्था गुर्वादयों बुद्धि: प्रयत्नानता: परादय: गुणा: प्रोक्ता: ।
अर्थ ( शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध ), बीस गुरु आदि गुण, बुद्धि, प्रयत्न गुण, परादि गुण इस प्रकार गुण का बताया गया हैं।
द्रव्य की परिभाषा –
खादीन्यात्मा मन: कालो दिशक्ष्च द्रव्यसंग्रह: ।
सेन्द्रिय चेतन द्रव्य, निरिंद्रियमचेतनम।।
ख ( आकाश ) आदि पंचमहाभूत, आत्मा, मन, काल और दिशा ये ९ प्रकार के द्रव्य होते हैं।
कर्म की परिभाषा –
संयोगे च विभागे च कारण द्रव्यमाश्रितम ।
कर्तव्यस्य क्रिया कर्म कर्म नान्यदपेक्षते ।।
जो एक ही साथ संयोग और विभाग में कारण हो एवम् द्रव्य के आश्रित हो उसे कर्म कहते हैं।
समवाय की परिभाषा –
पृथिवी आदि द्रव्यों के साथ गुणों का अपृथगभाव ( अलग न होना ) ही समवाय माना जाता हैं ।